- मौर्य साम्राज्य का उदय कैसे हुआ ?
- मौर्य काल के राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन की विशेषताएँ क्या थी ?
- मौर्यकालीन कला, संस्कृति तथा साहित्य की विशेषताएँ क्या थी ?
- पुरों व नगरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अच्छी सड़कें बनवाई ताकि लोग सरलता से यात्रा कर सकें।
- राहगीरों को तेज धूप से बचाव के लिये सड़कों के दोनों ओर छाया व फलदार वृक्ष लगवाएं ।
- पानी के लिये कुएं, बावड़ी, बाँध बनवाये ।
- यात्रियों के रूकने के लिए अनेक धर्मशालाएं बनवाई ।
- रोगियों के लिए चिकित्सालय खुलवाए एवं नि:शुल्क औषधियों को देने की व्यवस्था करवाई ।
- पशुओं एवं पक्षियों के लिये अलग से चिकित्सा केंद्रों का प्रबंध किया इन्हें पिंजरापोल कहा जाता था ।
राजधानी पाटलिपुत्र में प्रशासन के प्रत्येक विभाग के अध्यक्ष रहते थे । सम्राट को सलाह देने के लिए ‘मंत्रि-परिषद्’ थी । साम्राज्य को चार प्रांतों में बांटा गया था । प्रत्येक प्रान्त का शासन एक राज्यपाल सँभालता था, जो अधिकतर राजकुमार होता था ।
प्रत्येक प्रान्त को जिलों में बांटा गया था तथा जिलों में गाँवों को सम्मिलित किया गया था । राजाज्ञा के पालन व कानून व्यवस्था के लिए कई अधिकारी थे । कुछ अधिकारी कर वसूली का काम करते थे और कुछ न्यायाधीश होते थे । गांवों में अधिकारियों के दल होते थे । जो पशुओं का लेखा – जोखा रखते थे । नगरों की व्यवस्था को नगर परिषदें देखती थी ।
इन अधिकारियों के अलावा उसने ‘धर्म महामात्य’ भी नियुक्त किये थे, जो घूम-धूम कर लोगों की समस्याएं सुनते, स्थानीय कामों की जांच-पड़ताल करते और लोगों को धर्मानुसार आचरण करने और मेल-जोल से रहने की प्रेरणा देते थे ।
पड़ोसी देशों से संबंध- सम्राट अशोक ने दूर-दूर तक के राज्यों में अपने धर्मदूत भेजे तथा उनसे मित्रता की । उसने श्रीलंका में धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संधमित्रा को भेजा । श्री लंका के राजा ने बौद्ध धर्म स्वीकर किया । इसी तरह दूसरे कई देशों के लिए उसने अपने दूत भेजे थे ।
मौर्यकालीहन समाज – मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’, में जो कि यूनानी भाषा में लिखी थी, इसमें उस समय के भारतीय समाज का वर्णन है जैसे, अधिकतर लोग खेती करते थे और लोग सुखपूर्वक गाँवों में रहते थे । चरवाहे और गड़रिये भी गाँव में ही रहते थे । बुनकर, बढ़ई, लोहार, कुम्हार और अन्य कारीगर नगरों में रहते थे । ये राजा के उपयोग की वस्तुएं तथा नागरिकों के लिए सामान बनाते थे । व्यापार उन्नति पर था और व्यापारी दूर-दूर तक अपना माल बेचने जाया करते थे । ये लोग समुद्र के पार फारस की खाड़ी होते हुए पश्चिमी देशों को जाते थे । बड़ी संख्या में लोग सेना में भर्ती होते थे । सैनिकों को अच्छा वेतन मिलता था । समाज में ब्राह्मण, जैन और बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान किया जाता था । इस काल में चांदी सोने व तांबे के सिक्के चलते थे । पर्दा प्रथा नहीं थी । जीवन सरल सुखद व मिव्ययिता पूर्ण था ।
मध्यप्रदेश में मौर्यकाल के स्तूप साँची, भरहुत (सतना), सतधारा, तुमैन (जिला अशोकनगर), बरहट (जिला रीवा), उज्जैन आदि जगहों पर बने हैं । अशोक का साँची स्तूप, जिस पर चार सिंह बने हैं, अब साँची के संग्रहालय में रखा है । अशोक के स्तंभ लेख साँची व बरहट से मिले हैं तथा शिलालेख दतिया के पास गुजर्रा गाँव तथा भोपाल के पास पानगुराडि़या (नचने की तलाई) स्थान पर है । जबलपुर के निकट रूपनाथ स्थल से अशोक का लघु शिलालेख मिला है । साँची के बौद्ध स्मारक विश्व प्रसिद्ध है । साँची के बौद्ध स्मारक विश्व प्रसिद्ध है । इसे विश्वदाय भाग में सम्मिलित किया गया है । उज्जैन में अशोक 11 वर्ष अवन्ति का गवर्ननर रहा, उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संधमित्रा का जन्म उज्जैन में हुआ था । अशोक की एक रानी विदिशा की थी ।
- मेगस्थनीज यूनानी लेखक था । वह अवोशिया के क्षत्रप (शासक) के साथ रहता था और वहां से वह सेल्यूकस द्वारा अपना राजदूत बनाकर चन्द्रगुप्त मौर्य की राजसभा में पाटलिपुत्र भेजा गया था ।
- सारी दूनिया ने भारत से अंक तथा दशमलव प्रणाली सीखी । अरबों ने भारत से सीखा तथा यूरोपवासियों को सिखाया ।
- भारत से बौद्ध धर्म चीन पहुँचा । वहां से यह धर्म कोरिया और जापान गया ।
मौर्य कला – अशोक ने अपने संदेश चमकीली शिलाओं तथा स्तंभों पर खुदवाएं । स्तंभों के शीर्ष पर हाथी, साँड या सिंह की प्रतिमा बनाई गई थी । सारनाथ के स्तंभ पर चार सिंहों की आकृति बनी हुई है । ये स्तंभ आज भी देखे जा सकते हैं । सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद अशोक सारनाथ स्तंभ की चार सिंहों वाली कलाकृति को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया गया । यह सिंह स्तंभ आज सारनाथ के संग्रहालय में रखा है । इस काल में कई स्तूप, स्तंभ तथा भिक्षुओं के रहने के लिए बिहार व पर्वतों को काटकर गुफाएं बनवायी गयी । मूर्तियों में यक्ष और यक्षणी तथा पशुओं की मूर्तियाँ बनायी गयी थीं ।
मौर्य साम्राज्य का पतन – सम्राट अशोक और उसके पूर्वजों द्वारा स्थापित विशाल मौर्य साम्राज्य लगभग सौ वर्षों से कुछ अधिक समय तक चलता रहा और अशोक की मृत्यू होने के पश्चात वह छिन्न-छिन्न उत्तरीधिकारी उसकी तरह कुशल और योग्य नहीं थे । विशाल साम्राज्य के संचालन के लिए आवश्यक राशि भी कर के रूप में वसूल नहीं कर पा रहे थे । वे राजा जो अशोक के अधीन थे, अब स्वतंत्र होने लगे । इस प्रकार साम्राज्य कमजोर होता चला गया । फूट का परिणाम यह हुआ कि बैक्ट्रीया देश के यूनानी शासक ने पश्चिमोत्तर भाग पर हमला कर दिया । उस क्षेत्र के राजा को किसी अन्य राजा ने सहायता नहीं दी और वह पराजित हुआ । 185 वर्ष ई.पू. में पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ का वध कर मौर्य साम्राज्य का अंत कर दिया और शुंग वंश की स्थापना हुई ।
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