जनजाति समाज की प्रमुख विशेषताएं – जनजाति समाज की समस्या एवं समाधान हिंदी

देश में कई प्रकार की जातियां एवं जनजातियाँ पाई जाती है लेकिन आज हम इस पोस्ट में जनजाति समाज के बारे में जानेंगे और जानेंगे की जनजाति समाज की प्रमुख विशेषताएं क्या है .

जनजातियां क्या है ?

हमारे देश में कई जातियों तथा धर्मों के लोग निवास करते हैं इनमें से कुछ बनाना चलो में रहते हैं इन लोगों की अपनी जीवनशैली भाषा संस्कृति तथा परंपराएं होती हैं नगरीय समाज से इनका संपर्क सीमित हद तक होता है सुदूर जंगलों में इनका निवास होने से तथा विशिष्ट जीवनशैली के कारण इन्हें आदिवासी वनवासी जनजाति गिरिजन तथा वन्य जातियों के नाम से भी जाना जाता है ! आदिवासी शब्द से आशय संबंधित स्थान के मूल निवासी से है।

जनजातियों की प्रमुख विशेषताए

  1. एक जनजाति एक निश्चित भूभाग में निवास करती है!
  2. इनकी प्रायः अपनी भाषा (बोली) होती है !
  3. एक जनजाति के सदस्यों की अपनी संस्कृति रहन-सहन व जीवनशैली होती है एक जनजाति के सदस्य अपनी संस्कृति के नियमों का पालन करते हैं।
  4. एक जनजाति के सदस्य अपनी ही जनजाति में विवाह संबंध बनाते हैं!

   संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र भारत को एक नई कल्याणकारी राज्य बनाने की कल्पना की थी अतः समाज के ऐसे वर्ग जो अपेक्षाकृत कम प्रगति कर पाए थे या पिछड़े थे उनके लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए आदिवासी या जनजातियां भी समाज के अन्य वर्गों की तुलना में पिछड़े रह जाने के कारण उनके लिए भी संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं प्रत्येक राज्य में कौन से आदिवासी या जनजाति वर्ग के इन विशेष प्रावधानों का लाभ प्राप्त करने की पात्र होंगे यह संविधान में स्पष्ट किया गया है प्रत्येक राज्य के लिए इन जनजातियों की अनुसूची तैयार कर संविधान में शामिल की गई है तथा इन्हीं अनुसूचित जनजातियों कहा जाता है ।

केवल बेचन जातियां अनुसूचित जनजातियां कहलाती हैं जो सरकार द्वारा तैयार की गई संविधान की अनुसूची में सम्मिलित हैं।

 

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जनजातीय समाज में संगठन क्या है ?

समाज चाहे आदमपुर या आधुनिक प्रत्येक समाज की एक संरचना होती है समाज का अपना संगठन होता है जिसके कारण समाज के सदस्य एकजुट रहते हैं यह समाज का जनजातीय समाज में संगठन कहलाता है। सामाजिक संगठन का तात्पर्य होता है सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित रखना और उन्हें व्यवस्थित रूप से बनाए रखना यह सामाजिक संगठन का मूल अर्थ होता है !

जनजातियों में सामाजिक संगठन के अंतर्गत नातेदारी विवाह परिवार वंश समूह गोत्र आदि का विशेष महत्व है ।

जनजातियों में उनके निवास की प्रकृति एवं स्थानीय आधार पर खान व दोषी समूह जनजाति आदि भागों में बांटा जा सकता है जनजातियों के कुछ सामाजिक संगठन हैं ।

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गोत्र संगठन

जनजाति का कोई ना कोई गोत्र अवश्य होता है तथा एक गोत्र के सदस्य आपस में भाई बहन माने जाते हैं एक गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं कर सकते यह वंशानुक्रम के अंतर्गत होने के बावजूद तथा सामाजिक दृष्टि से गोत्र के अंतर्गत होने के कारण भाई बहनों के संबंध के रूप में इन्हें विभाजित किया जाता है !

 

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खानाबदोशी समूह

इन समूहों के लोग घुमक्कड़ होते हैं तथा एक निश्चित भूभाग में निरंतर घूमते रहते हैं इनका जीवन कठोर होता है ऐसी प्रत्येक समाज में कई छोटे-छोटे सामाजिक समूह होते हैं जो मनुष्यों के आपसी संबंधों के फल स्वरुप बनते हैं यह समूह अलग-अलग होते हुए भी संगठित रहते हैं ऐसे संगठित सामाजिक स्वरूप को सामाजिक संगठन कहते हैं !

जनजातियों का आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जनजीवन क्या है ?

जनजातियों की अर्थव्यवस्था उन्नत समाज की अर्थव्यवस्था से भिन्न होती है इनकी आवश्यकताएं सीमित होती हैं यह अपनी सीमित आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर निर्भर रहते हैं यह जनजातियां कृषि वन ओपन संग्रह तथा मजदूरी करके अपना जीवन यापन करती हैं इनकी काफी बड़ी संख्या वन क्षेत्रों में निवास करती है सरकारी नीतियों व प्रयासों के कारण इन जनजातियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है !

उद्योग धंधे में विस्तार के कारण जनजाति के लोग रोजगार के लिए नगरों व शहरों की ओर आकर्षित हुए हैं तथा उत्खनन निर्माण कार्य परिवहन व्यापार और अन्य सेवाओं में भागीदारी कर रहे हैं इन क्षेत्रों में कार्य करने से अर्थव्यवस्था को गति मिली है और इनके जीवन में सुधार आया है जनजातियों का आर्थिक विकास होना आरंभ हुआ है ।

वनोपज संग्रह क्या है ?

मध्यप्रदेश में जनजातियों में विशेषकर गोंड एवं भील जनजाति के लोग निवास करते हैं इनकी जीविकापार्जन का एक प्रमुख साधन वनोपज संग्रह है वनोपज संग्रहण में तेंदू, अचार, बहेड़ा, महुआ, सालबीच आदि वन उपज के साथ कंदमूल व शहद का संग्रहण करना बोंडी एवं ढीली जनजातियों का प्रमुख आर्थिक क्रियाकलाप है कुछ जनजाति विशेषकर गोंड एवं बैगन औषधि से इलाज करने का भी कार्य करते हैं वनोपज एकत्रित करने के अतिरिक्त बांस की विभिन्न वस्तुओं का निर्माण बढ़ईगिरी, लोहे के औजार बनाना, बोझा ढोने साधन बनाना कृषि एवं कृषि मजदूरी के कार्य भी करते हैं जय मध्य प्रदेश की जनजातियों गोंडो एवं जिलों द्वारा किए जाते हैं

सामाजिक जन जीवन क्या है ? समझाइए एवं विस्तार पूर्वक सामाजिक जनजीवन के बारे में बताइए ।

जनजाति के लोग प्रकृति की गोद में सरल जीवन व्यतीत करते हैं कुछ जातियां खानाबदोश हैं इनकी सरल जीवन शैली में रीति-रिवाजों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जनजातीय समाज की अपनी परंपराएं और मान्यताएं होती हैं इन्हीं के अनुसार ही अपने बच्चों के व्यवहार नामकरण संस्कार करते हैं इनके कुछ परिवारों में पिता तथा कुछ परिवारों में माता मुखिया होती हैं ।

जनजातीय समाजों में पुत्री का जन्म भार स्वरूप नहीं माना जाता इनमें परंपराएं, रीति रिवाज, सामाजिक निषेध आदि बातों का पालन किया जाता है भी लोग बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी मनाते हैं गोंडी जनजाति में बच्चे के जन्म के पश्चात रात्रि में महिलाएं लोकगीत का गायन करती हैं तथा यह मृतक का विधिवत अग्नि संस्कार करते हैं अग्नि संस्कार के तीसरे दिन मुंडन, घर द्वार की साफ-सफाई व स्नान सामूहिक तौर पर किया जाता है जिसके कारण यह घर का पवित्रीकरण माना जाता है !

 

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सांस्कृतिक जीवन क्या है ? समझाइए

जनजातियों की अपनी अलग पहचान व संस्कृति है संगीत और नृत्य उनकी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं कृषि कार्यों, त्योंहारों आदि के अवसरों पर गाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के गीत होते हैं संस्कृति के संबंधित नियमों की करने पर कठोर सामाजिक दंड दिया जाता है जनजाति के मुखिया व बड़े बुजुर्ग अपने सांस्कृतिक नियमों का पालन को सुनिश्चित करते हैं यह धनु का निर्धारण भी करते हैं निवास और व्यवसायियों में समय गत परिवर्तन के कारण वर्तमान में इनकी संस्कृति में बदलाव भी होने लगा है !

भगोरिया हाट तथा पिथौरा शैली क्या है ?

भील जनजाति में होली के समय मनाया जाने वाला उत्सव ‘भगोरिया हाट’ का विशेष महत्व होता है भगोरिया भेड़िया आदित्य प्रमुख होते हैं इनके भित्तिचित्रों में पिठौरा-शैली के प्रमुख चित्र बहुत लोकप्रिय हैं आदिम जनजातियों के लोगों में अपने शरीर पर शुभचिन्ह, पशु पक्षियों और गहनों के चित्र नाम इत्यादि को शरीर पर स्थाई अंकन करवा देने की प्रथा लोकप्रिय है इस अंकन को गुदना कहा जाता है जनजातियों के लोगों का विश्वास होता है कि बुध ना उनके जीवन भर के आभूषण हैं

संविधान में जनजातीय कल्याण के लिए कौन-कौन सी चीज व्यवस्थाएं बनाई गई है जो जनजातियों के लिए उपयोगी हैं ?

जनजातीय विकास के लिए हमारे संविधान निर्माता भी सजग रहे एवं जनजातियों के विकास के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं

  1. राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, वंश, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
  2. सार्वजनिक स्थानों दुकानों, सड़कों, तालाबों आदि के प्रयोग के लिए कोई किसी को नहीं रोकेगा ।
  3. शिक्षण संस्थाओं मैं धर्म, जाति, वंश अथवा भाषा के आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जावेगा।
  4. व्यवसायों को स्वतंत्र रूप से करने की व्यवस्था की गई है ।
  5. लोकसभा, विधानसभाओं, पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में इन वर्गों के लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।
  6. संघ एवं राज्य सरकारों की सेवाओं में भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।

 

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संविधान की मूल भावना में यह है कि इन वर्गों के कल्याण एवं विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन समर्पित भाव से किया जाएगा ताकि ऐसे समाज की स्थापना हो सके जिसमें प्रत्येक नागरिक को अपने पूर्ण सामर्थ्य से उसके व्यक्तित्व का विकास हो ।

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Comments: Add A Comment

  1. kartik says

    bahut achhi jankari share ki hai apne pad ke maza aa gaya.

    • jaane says

      comment karne k liye thanks dear reader. agar aap kisi bi bare me post agar hameri wapsite pr padna chahte hain to hume email box main ya comment box main aap bata sakte hain

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